قۆرئان بتنێ

1

يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمُدَّثِّرُ

ऐ कपड़े में लिपटने वाले![1]








8

فَإِذَا نُقِرَ فِي ٱلنَّاقُورِ

फिर जब सूर में फूँक[2] मारी जाएगी।


9

فَذَٰلِكَ يَوۡمَئِذٖ يَوۡمٌ عَسِيرٌ

तो वह दिन अति भीषण दिन होगा।


10

عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ غَيۡرُ يَسِيرٖ

काफ़िरों पर आसान न होगा।



12

وَجَعَلۡتُ لَهُۥ مَالٗا مَّمۡدُودٗا

और मैंने उसे बहुत सारा धन प्रदान किया।










21

ثُمَّ نَظَرَ

फिर उसने देखा।



23

ثُمَّ أَدۡبَرَ وَٱسۡتَكۡبَرَ

फिर उसने पीठ फेरी और घमंड किया।



25

إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا قَوۡلُ ٱلۡبَشَرِ

यह तो मात्र मनुष्य[7] की वाणी है।







31

وَمَا جَعَلۡنَآ أَصۡحَٰبَ ٱلنَّارِ إِلَّا مَلَٰٓئِكَةٗۖ وَمَا جَعَلۡنَا عِدَّتَهُمۡ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ لِيَسۡتَيۡقِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَيَزۡدَادَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِيمَٰنٗا وَلَا يَرۡتَابَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَلِيَقُولَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡكَٰفِرُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَمَا يَعۡلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَۚ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡبَشَرِ

और हमने जहन्नम के रक्षक फ़रिश्ते ही बनाए हैं और उनकी संख्या को काफ़िरों के लिए परीक्षण बनाया है। ताकि अह्ले किताब[8] विश्वास कर लें और ईमान वाले ईमान में आगे बढ़ जाएँ। और किताब वाले एवं ईमान वाले किसी संदेह में न पड़ें। और ताकि वे लोग जिनके दिलों में रोग है और वे लोग जो काफ़िर[9] हैं, यह कहें कि इस उदाहरण से अल्लाह का क्या तात्पर्य है? ऐसे ही, अल्लाह जिसे चाहता है गुमराह करता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। और आपके पालनहार की सेनाओं को उसके सिवा कोई नहीं जानता। और यह तो केवल मनुष्य के लिए उपदेश है।



33

وَٱلَّيۡلِ إِذۡ أَدۡبَرَ

तथा रात की, जब वह जाने लगे!







39

إِلَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلۡيَمِينِ

सिवाय दाहिने वालों के।






44

وَلَمۡ نَكُ نُطۡعِمُ ٱلۡمِسۡكِينَ

और न हम निर्धन को खाना खिलाते थे।



46

وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ

और हम बदले के दिन को झुठलाया करते थे।


47

حَتَّىٰٓ أَتَىٰنَا ٱلۡيَقِينُ

यहाँ तक कि मौत हमारे पास आ गई।




50

كَأَنَّهُمۡ حُمُرٞ مُّسۡتَنفِرَةٞ

जैसे वे सख़्त बिदकने वाले गधे हैं।


51

فَرَّتۡ مِن قَسۡوَرَةِۭ

जो शेर से भागे हैं।


52

بَلۡ يُرِيدُ كُلُّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ أَن يُؤۡتَىٰ صُحُفٗا مُّنَشَّرَةٗ

बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली पुस्तकें[14] दी जाएँ।






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